राज्य सरकार द्वारा कम छात्र संख्या वाले प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालयों को अन्य स्कूलों में मर्ज (विलय) करने के फैसले के खिलाफ प्रदेश भर में विरोध तेज हो गया है। शिक्षक समुदाय का कहना है कि यह फैसला समाज के सबसे वंचित वर्ग के बच्चों के मौलिक शिक्षा अधिकार पर सीधा हमला है।
शिक्षक हिमांशु राणा ने इस फैसले के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए कहा कि विद्यालय बंद होने से बच्चों की RTE (Right to Education) अधिनियम के तहत मिलने वाली निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा बाधित होगी। उन्होंने इस मामले को लेकर दिल्ली के वरिष्ठ अधिवक्ताओं से कानूनी सलाह-मशविरा किया है और जल्द ही कोर्ट में चुनौती देने की तैयारी कर ली है।
राणा ने स्पष्ट किया कि सरकारी कर्मचारी होने के कारण शिक्षक स्वयं याचिका नहीं दायर कर सकते, लेकिन यह लड़ाई अब अभिभावकों के माध्यम से लड़ी जाएगी। इसके लिए उन्होंने सभी शिक्षकों से अपील की है कि वे ऐसे अभिभावकों से संपर्क करें जिनके बच्चों का विद्यालय दूर स्थान पर मर्ज कर दिया गया है।
क्या जानकारी जुटानी होगी?
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बच्चे और अभिभावक का नाम
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आधार नंबर
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पूर्व व वर्तमान विद्यालय का नाम
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विद्यालय के बीच की दूरी
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अभिभावक की लिखित सहमति
राणा ने जोर देकर कहा कि सभी शिक्षक अलग-अलग कोर्ट केस करने की बजाय एकजुट होकर सामूहिक याचिका दायर करें। यह किसी व्यक्ति की नहीं, बल्कि बेसिक शिक्षा को बचाने की सामूहिक लड़ाई है।
चेतावनी और आह्वान
उन्होंने चेताया कि यदि आज शिक्षक शांत रहे, तो हर वर्ष स्कूल बंद होते जाएंगे और आउटसोर्सिंग बढ़ेगी। यह सिर्फ समायोजन या स्थानांतरण नहीं, बल्कि शिक्षा के निजीकरण की ओर ले जाने वाला रास्ता है।
अगला कदम
जल्द ही लखनऊ या इलाहाबाद में अधिवक्ताओं से अंतिम कानूनी रणनीति तय की जाएगी। राणा ने सभी शिक्षकों से इस लड़ाई को गंभीरता से लेने और संगठित होकर आगे बढ़ने की अपील की।
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